बदलाव से तनाव क्यों?
सामान्यतयः हमारी ज़िन्दगी में कोई भी
अनचाहा बदलाव हमें तनाव देता है चाहे वो हमारी दिनचर्या में हो, कार्यस्थल या
नौकरी से सम्बंधित हो या हमारे रिश्तों में हो | पर बदलाव तो हमारे चारों तरफ और
हमारे अंदर निरंतर होते रहते हैं। जीवित और अजीवित सभी चीजें बदलती रहती है| कुछ
सालों बाद जब एक व्यक्ति एक शहर में वापस आया तो बोला यह शहर कितना बदल गया |
यहां की इमारतें अब पहचान में नहीं आ रही है। रोज़ होते छोटे-छोटे
बदलावों को हम देख नहीं पाते या यूं कहें उन्हें संज्ञान में ही नहीं लेते। कभी जब
छोटे छोटे प्रतिकूल बदलाव बड़ा रूप लेते हैं तो हम अपने आपको मुश्किल में पाते
हैं।
जीवन सतत परिवर्तन से हमारी परीक्षा लेता रहता हैं | परिवर्तन जो हमारे अनुकूल होते हैं हम उन्हें सहज स्वीकार कर लेते हैं | परिवर्तन जो हमारे जीवन में धीरे धीरे आते हैं हम उनसे adjust कर लेते हैं या समन्वय बिठा लेते हैं | पर कभी कभी कोई बड़ा परिवर्तन अचानक हमारी जिंदिगी में आता है और हमारे जीवन की गाड़ी को पटरी से उतार देता है | अकसर हम ऐसे परिवर्तन के लिए तैयार नहीं होते हैं और न ही हमें उनका पूर्वानुमान होता है |
विपरीत परिवर्तनों के प्रति हर व्यक्ति
की अपनी प्रतिक्रिया होती है | व्यक्ति अपनी समझ, क्षमता. पूर्व अनुभव के अनुसार
परिवर्तन का सामना करता है । पर विपरीत परिवर्तन की मार को सभी समान रूप से नहीं झेल पाते हैं । कुछ लोग
परिवर्तन के बहाव में तैरना सहजता से सीख लेते हैं और कुछ के लिए परिवर्तन गंभीर
पीड़ा का कारण बन जाता है।
परिवर्तन से तनाव कभी इतना भी बढ़ सकता
है कि व्यक्ति अपना आत्मविश्वास खो देता है । उसमें परिवर्तन से निपटने के लिए कुछ
भी प्रयास करने की इच्छा नहीं रह जाती | सच तो यह है कि
व्यक्ति को समझ में ही नहीं आता कि वह क्या करे |
वह घुटन और निराशा के एहसास से भर जाता है | ऐसे
में वह अत्यंत खामोश हो जाता है या अत्यंत चिड़चिड़ा या दोनों। वह चाह कर भी इस
परिस्थिति से बाहर निकलने से अपने आप को असमर्थ पाता है। जीवन अब बेमानी है,
अब कुछ नहीं हो सकता, यह हताशा उसे घेर लेती है।
यदि आपको भी कोई परिवर्तन तनाव दे रहा
है तो यह स्वाभाविक है | आपको इससे परेशान होने कि आवश्यकता नहीं है
| आवश्यकता है तो इस परिवर्तन के प्रति अपने दृष्टिकोण व अपनी प्रतिक्रिया को
बदलने की | आप इस परिस्थिति से उबर सकते हैं | परिस्थितियां हम पर नियंत्रण करें
इससे अच्छा है कि हम परिस्थितियों पर नियंत्रण करें |
स्वभावतय: हमें बदलाव पसंद नहीं होता | हम
परिचित जगहों पर रहना परिचित व्यक्तियों के साथ उठना बैठना, एक
ही रास्ते का प्रयोग कर बाजार या ऑफिस जाना या पूर्व में प्रयोग करे सामान को ही
पुनः खरीदना, एक ही जगह से सामान खरीदना पसंद करते हैं | इसे Familiarity bias (फैमिलियरिटी बायस या परिचित पूर्वाग्रह) कहते हैं
| फैमिलियरिटी बायस में व्यक्ति की पसंद उन्हीं चीजों तक सीमित रहती
है जिनसे वह परिचित होता है । इसी प्रकार हमारे अंदर Status Quo bias (स्टेटस को बायस) होता है जिसके कारण हम पहले से समझे बूझे और परिचित
वातावरण में रहना चाहते हैं और हर उस परिवर्तन को रोकने का प्रयास करते है जो
हमारे प्रतिकूल है या जिसे हम समझ नहीं पाते कि वो हमारे लिए अच्छा है या बुरा |
हमारे पूर्वाग्रह :
विशेषज्ञों के अनुसार लोगों में ऐसे कई
संज्ञानात्मक पूर्वाग्रह (Cognitive bias कॉग्निटिव
बॉयस) होते हैं | यह पूर्वाग्रह हमारे निर्णयों
को और हमारी निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित करते हैं । इन पूर्वाग्रहों के
कारण हम समझदारी भरे निर्णयों के स्थान पर अपनी अवधारणाओं (belief system) के आधार पर निर्णय लेते हैं | हम प्रायः अपनी
अवधारणाओं की सच्चाई को परखते नहीं है जिसके कारण हमारे निर्णय सही नहीं हो पाते ।
परिवर्तन के प्रति हमारी प्रतिक्रिया ही हमारा भविष्य तय कराती है :
इन अचानक आये बड़े बदलावों के प्रति
हमारी क्या प्रतिक्रिया होती है वाही हमारी सफलता या असफलता को सुनिश्चित करती है । सभी कुछ हमारी प्रतिक्रिया या मानसिक स्थिति पर निर्भर करता है। आपको सकारात्मक
मनोवृति या नकारात्मक मनोवृति के बीच में चुनाव करना होता है।
परिवर्तन के बिना प्रगति संभव नहीं है । इसके लिए आवश्यक परिवर्तनों को स्वीकारना और लागू करना होगा। यानी परिवर्तन लाने के लिए विवश होने से अच्छा है कि हम स्वयं ही अपनी जिंदगी में परिवर्तन लायें | नई परिस्थितियों में असफलता के भय को मन से निकालना और बदली स्थिति में ही सफलता की कुंजी को खोजने के प्रयत्न करने में ही समझदारी है। क्या नहीं हो पाएगा या क्या बुरा होगा यह सोचने के बजाय सकारात्मक विचार मन में लाएं जैसे क्या अच्छा होगा, क्या नए अनुभव प्राप्त होंगे, क्या सुख व उपलब्धि में वृद्धि होगी, इत्यादि।
परिवर्तन के बिना प्रगति संभव नहीं है । इसके लिए आवश्यक परिवर्तनों को स्वीकारना और लागू करना होगा। यानी परिवर्तन लाने के लिए विवश होने से अच्छा है कि हम स्वयं ही अपनी जिंदगी में परिवर्तन लायें | नई परिस्थितियों में असफलता के भय को मन से निकालना और बदली स्थिति में ही सफलता की कुंजी को खोजने के प्रयत्न करने में ही समझदारी है। क्या नहीं हो पाएगा या क्या बुरा होगा यह सोचने के बजाय सकारात्मक विचार मन में लाएं जैसे क्या अच्छा होगा, क्या नए अनुभव प्राप्त होंगे, क्या सुख व उपलब्धि में वृद्धि होगी, इत्यादि।
परिवर्तन सभी की परीक्षा लेता है :
महत्वपूर्ण है कि इन अचानक आये बदलावों
की चुनौतियों से कोई भी अछूता नहीं रहता है | बड़े से बड़े व्यक्ति और बड़ी से बड़ी
संस्था या कंपनी को ये बदलाव चुनौती देते हैं |
इतने बड़े झटकों के बाद इन महान व्यक्तियों ने क्या प्रतिक्रिया दी ? क्या वो अवसाद के बोझ से दब गए ? क्या उन्हें भी अत्यंत दुःख का सामना करना पड़ा ? Apple Inc. से निकाले जाने के बाद Steve Jobs अत्यंत हताश हुए किन्तु उन्होंने हार नहीं मानी और फिर हिम्मत जुटा कर दो नई सफल कम्पनियों की स्थापना की – Next और Pixar | बाद में Apple कंपनी ने Next कंपनी को खरीदा और Steve Jobs पुनः Apple कंपनी के CEO बने | Soichiro Honda ने भी Honda Motor Company जैसी सफल कंपनी की स्थापना की जिसकी बनाई मोटर साइकिलों ने अमेरिकन कम्पनियों को कहीं पीछे छोड़ दिया | Thomas Edison ने बहुत बड़ा नुक्सान होने के बाद भी कहा कि "यूँ तो मेरी उम्र 67 साल से ऊपर है, फिर भी मैं कल से एक नयी शुरुआत करूंगा (Although I am over 67 years old, I'll start all over again tomorrow)” | उन्होंने और उनकी प्रयोगशाला के कर्मचारियों ने दिन रात मेहनत कर तीन हफ्ते में प्रयोगशाला को फिर से चालू कर दिया | Henry Ford ने प्रारम्भिक असफलताओं के बावजूद भी Ford Motor Company जैसी सफल कार कंपनी की स्थापना की और सस्ती कारें बनाकर उन्हें मध्यवर्गीय जनता तक पहुंचाया |
परिवर्तन में निर्णय लेने की परीक्षा
बड़ी बड़ी कम्पनियों को भी देनी पड़ती है | Kodak (कोडक) एक समय में दुनिया की सबसे बड़ी
फिल्म कंपनी थी | कोडक ने मोबाइल फोन और अन्य डिजिटल उपकरणों का उपयोग करके चित्र
लेने के लिए तकनीकी विकास में अरबों डॉलर का निवेश किया और कोडक इंजीनियर ने
वास्तव में 1975 में पहले डिजिटल कैमरे का
आविष्कार किया था | किन्तु कम्पनी ने इस तकनीक का प्रयोग नहीं किया क्योँकि वह
फोटो फिल्म बनाने पर किये बड़े निवेश को ख़त्म नहीं करना चाह रही थी | फलस्वरूप कोडक
डिजिटल क्रांति की दौड़ में पिछड़ गयी | कोडक ने 2012 में स्वयं को दिवालिया घोषित
किया | वहीँ Canon कम्पनी ने डिजिटल तकनीक को अपनाया और कैमरा जगत में सफलता
प्राप्त की | इसी प्रकार Polaroid, Nokia, Blackberry ने भी समय के साथ बदलाव नहीं
किये और सफलता के शीर्ष से धरातल पर आ गयी| Xerox कम्पनी के पास कंप्यूटर की
आधुनिक तकनीक (GUI – Graphical User Interface, Computer mouse, PC
Networking) होते हुए भी वह इस तकनीक का उपयोग सफलतापूर्वक नहीं कर
पायी | Steve Jobs ने Xerox से देखकर उसी तकनीक का Apple कंप्यूटर में प्रयोग किया
और विशेष सफलता पायी | वहीँ Xerox द्वारा बनाए कंप्यूटर बुरी तरह असफल रहे | ये
सभी कम्पनियां Digital Darwinism की शिकार हुई (एक ऐसा युग जहां प्रौद्योगिकी और समाज में विकास
की गति इतनी तेज़ हो कि व्यवसायों को स्वाभाविक रूप से उसके अनुकूल बने रहने में
कठिनाई हो) |
परिवर्तन को स्वीकारें और आगे बढ़ें :
जीवन में जब परिस्थितियां प्रतिकूल हो
तो हम व्यथित होते हैं, हमें दुःख मिलता है | परिस्थितियां जितनी प्रतिकूल होती है
दुःख उतना ही बड़ा होता है | Elisabeth Kubler-Ross (एलिजाबेथ कूब्लर-रास) ने 1969 में
लिखीअपनी किताब “On death and dying”
में कहा यदि हमें किसी चीज से गहरा सदमा पहुंचता है तो हमारी प्रतिक्रिया 5 चरणों
में होती है । Denial and Isolation (अस्वीकारना
एवं एकाकीपन), Anger (क्रोध), Bargaining (सौदेबाजी), Depression (हताशा), और Acceptance (स्वीकारना) | जितनी
जल्दी हम resistance, anger, denial और depression से आगे बढकर अगले चरण Acceptance में पहुंचते हैं हमारा जीवन उतनी जल्दी पटरी
पर आता है | बाद में John Fisher (जॉन फिशर) व Ralph Lewis-Chris Parker (राल्फ
लेविस – क्रिस पारकर) ने इसमें Moving Forward, Integration इत्यादि चरण जोड़े जो
कि Acceptance के बाद जीवन को वापस पटरी पर लाने की परिस्थितियां हैं|
Dr Spencer Johnson (डॉक्टर
स्पेंसर जॉनसन) ने अपनी किताब “Who moved my cheese?” में
बहुत सुंदरता से एक छोटी कहानी में इन मानसिक परिस्थितियों को दर्शाया है | इस
किताब में पात्रों और वस्तुओं का प्रतीकों के रूप में बहुत सुंदर प्रयोग किया गया
है । इस किताब का हिंदी रूपांतरण “मेरा चीज़ किसने हटाया?” भी उपलब्ध है | कहानी के
कुछ प्रमुख बिंदु संक्षिप्त में इस प्रकार है |
कहानी से सीख :
·
परिवर्तन रास्तों के बंद हो जाने का संकेत
नहीं है बल्कि नए रास्तों को खोजने की प्रक्रिया है |
·
हम सभी को परिवर्तन से डर लगता है।
·
परिवर्तन के भय से निष्क्रिय रहना या
कुछ ना करना कोई समाधान नहीं है। हमें विकल्पों की तलाश करनी चाहिए।
·
परिवर्तन के अनुसार बदलने का निर्णय
केवल हम ही ले सकते हैं।
·
यह सोचें कि यदि आप डर नहीं रहे हैं तो
आप क्या करेंगे।
·
भविष्य में अपने आसपास हो रहे
परिवर्तनों के प्रति सजग रहें।
·
अपने आसपास हो रहे परिवर्तन के साथ-साथ
स्वयं को बदलने के लिए तत्पर रहें।
·
समय-समय पर अपने आप ही परिवर्तन को
जीवन में डालें जिससे परिवर्तन का सामना करने की आपकी ताकत और इच्छाशक्ति हमेशा
बनी रहे।
·
नए विकल्पों पर कार्य करने का भय, नए
विकल्प पर वास्तविकता में काम करने से कहीं अधिक डरावना होता है।
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